द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होंगी। अपने प्रतिद्वंदी यशवंत सिन्हा को पछाड़कर द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। पार्षद से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाली द्रौपदी मुर्मू ने शायद ही ऐसा सोचा होगा कि वो देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठेंगी।
पार्षद से राष्ट्रपति बनने तक का सफरद्रौपदी मुर्मू ने साल 1997 में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था, जब वो रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद बनी थीं। इसके बाद साल 2000 से 2004 तक ओडिशा की बीजद-भाजपा की गठबंधन सरकार में मंत्री बनीं। 2015 में वो झारखंड की राज्यपाल नियुक्त की गईं और 2021 तक इस पद पर रहीं। अब द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बनने जा रही हैं।
साल 2009 में उस वक्त भी उन्होंने विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी, जब बीजेपी और बीजद गठबंधन टूट चुका था। इन चुनावों में नवीन पटनायक की पार्टी बीजद को जीत हासिल हुई थी। ओडिशा सरकार में मंत्री रहते हुए उनके पास परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य पालन और पुशपालन जैसे मंत्रालयों की जिम्मेदारी थी। इसके अलावा, वो बीजेपी की ओडिशा इकाई की अनुसूचित जनजाति मोर्चा की उपाध्यक्ष और बाद में अध्यक्ष भी रहीं।
राज्यपाल के रूप में द्रौपदी मुर्मू ने अपनी ही सरकार द्वारा विधानसभा से पारित कराई गई सीएनटी-एसपीटी में संशोधन से संबंधित विधेयक लौटा दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने वर्तमान सरकार में जनजातीय परामर्शदातृ समिति (टीएसी) के गठन से संबंधित फाइल भी लौटा दी थी। उन्हें साल 2007 में ओडिशा विधानसभा की ओर से साल के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
2018 के पत्थलगड़ी विवाद को भी द्रौपदी मुर्मू ने हल करवाया था। उस वक्त वो झारखंड की राज्यपाल थीं। उस वक्त खूंटी जिले के पत्थलगड़ी समर्थकों ने सरकारी सुविधाएं लेने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राजभवन बुलाया और उनसे बात कर संविधान पर विश्वास जताने की अपील की थी। उनकी इस अपील पर आंदोलन शांत हुआ था।
पढ़ाई के दौरान द्रौपदी की श्याम चरण मुर्मू से मुलाकात हुई। यह बात 1980 की है। द्रौपदी और श्याम चरण मुर्मू दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे थे। दोनों एक साथ आगे का जीवन व्यतीत करना चाहते थे। परिवार की रजामंदी के लिए श्याम चरण विवाह का प्रस्ताव लेकर द्रौपदी के घर पहुंच गए। श्याम चरण के कुछ रिश्तेदार द्रौपदी के गांव में ही रहते थे। ऐसे में अपनी बात रखने के लिए श्याम चरण अपने चाचा और रिश्तेदारों को लेकर द्रौपदी के घर गए थे। तमाम कोशिशों के बावजूद द्रौपदी के पिता बिरंची नारायण टुडू ने इस रिश्ते को लेकर इंकार कर दिया।
श्याम चरण भी पीछे हटने वाले नहीं थे। उन्होंने तय कर लिया था कि अगर वह शादी करेंगे तो द्रौपदी से ही करेंगे। द्रौपदी ने भी घर में साफ कह दिया था कि वह श्याम चरण से ही शादी करेंगी। श्याम चरण ने तीन दिन तक द्रौपदी के गांव में ही डेरा डाल लिया। थक हारकर द्रौपदी के पिता ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी।
शादी के लिए द्रौपदी के पिता मान चुके थे। अब श्याम चरण और द्रौपदी के घरवाले दहेज की बातचीत को लेकर बैठे। इसमें तय हुआ कि श्याम चरण के घर से द्रौपदी को एक गाय, एक बैल और 16 जोड़ी कपड़े दिए जाएंगे। दोनों के परिवार इस पर सहमत हो गए। दरअसल द्रौपदी जिस संथाल समुदाय से आती हैं, उसमें लड़की के घरवालों को लड़के की तरफ से दहेज दिया जाता है।
कुछ दिन बाद श्याम से द्रौपदी का विवाह हो गया। बताया जाता है कि द्रौपदी और श्याम की शादी में लाल-पीले देसी मुर्गे का भोज हुआ था। तब लगभग हर जगह शादी में यही बनता था।